Landlord And Tenant Laws: मकानमालिकों के बहुत सारे संदेह होते हैं जब वे सोचते हैं कि कोई किराएदार उनके प्रॉपर्टी में दिन-रात बिना किसी रूकावट के बस जाता है। वे डरते हैं कि यदि किराएदार बहुत समय तक यहां रहता है, तो क्या यह उनके प्रॉपर्टी का पर्मानेंट कब्जा बन सकता है। इस पर विचार करने से पहले, हमें भारत में मकानमालिक और किराएदार के बीच के कुछ मुख्य किराएदार और मकानमालिक कानूनों को समझना आवश्यक है।
संपत्ति पर कब्जा
Landlord And Tenant Laws: अक्सर सुना जाता है कि किराएदार द्वारा लंबे समय तक किराया देने के बाद भी मकान मालिक को घर खाली करने में मुश्किलें उत्पन्न हो जाती हैं। इस परिस्थिति से जुड़े मकान मालिक डरते हैं कि वे किराएदार के संपत्ति पर कब्जा किया जा सकता है। इस बारे में अनेक प्रकार की समाचार रिपोर्ट्स भी प्रकाशित होती हैं, जिनमें किराएदार के मकान को खाली नहीं करने की घटनाओं की चर्चा की जाती है।
पहली बात, भारत में किराएदार को किसी भी समय पर विशेष आपत्ति के बिना निकालने का अधिकार नहीं होता। किराएदार को अधिकारी या कोर्ट के आदेश के बिना किसी को भी निकालने की अनुमति नहीं होती है।
समयावधि की गणना Landlord And Tenant Laws:
दूसरी बात, भारतीय किराएदार कानून में एक निर्धारित समयावधि के बाद किराएदार के लिए लोकर्पण का अधिकार दिया जाता है। इस समयावधि की गणना व्यापारिक और नैतिक आधारों पर की जाती है और यह विभिन्न राज्यों में भिन्न हो सकती है, लेकिन आमतौर पर 11 महीने से 5 वर्षों के बीच होती है।
तीसरी बात, यदि किराएदार के साथ समयावधि के बाद भी उसे निकालना चाहते हैं, तो मकानमालिक को न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से उन्हें निकालना होता है। यह प्रक्रिया व्यापारिक और संविदानिक होती है और किराएदार के हक का सम्मान करती है।
Landlord And Tenant Laws: इसलिए, मकानमालिक को यह समझना चाहिए कि किराएदार के पास भी अपने हक होते हैं और उन्हें बिना किसी विचार के नहीं निकाला जा सकता है। न्यायिक प्रक्रिया का पालन करना और स्थानीय किराएदार कानून को समझना महत्वपूर्ण है ताकि आप ठीक तरीके से किराएदार को निकाल सकें और आपके विशेष अधिकारों का उपयोग कर सकें।
किराएदारों को कानून द्वारा यह अधिकार प्राप्त होता
- कुछ विशेष परिस्थितियों में, किराएदारों को अधिकार प्राप्त हो सकता है कि वे प्रॉपर्टी पर दीर्घकालिक कब्जा जमा करें.
- इसके लिए कानून कुछ मान्यता देता है,
- जिससे किराएदारों का मालिकाना हक बन सकता है.
- विशेष स्थितियों में, मकानमालिकों को किराएदार से प्रॉपर्टी खाली करवाने का अधिकार हो सकता है.
- किराएदारों और मकानमालिकों के बीच किराया और किराये की शर्तों का सख्त पालन करना महत्वपूर्ण है.
- किसी भी समस्या के समाधान के लिए कानूनी सलाह लेना सुझावित है,
- जिससे अधिकार और पफ़्लीक़ को समझा जा सके.
क्या कहता है कानून?
वकील चेतन पारीक के अनुसार, सामान्य तौर पर, किसी भी किराएदार का मकान मालिक की संपत्ति पर कोई निर्वाधिकार नहीं होता है। हालांकि, कुछ परिस्थितियों में, किराए पर रहने वाले व्यक्ति किसी संपत्ति पर अपना दावा लगा सकता है। इसके बावजूद, ‘ट्रांसफर ऑफ प्रोपर्टी एक्ट’ के अनुसार, एडवर्स पजेशन के मामले में ऐसा नहीं होता है, और उस व्यक्ति को संपत्ति को बेचने का अधिकार भी होता है, जिस पर संपत्ति का कब्जा होता है। इसका मतलब है कि अगर कोई व्यक्ति किसी संपत्ति पर 12 साल तक एडवर्स पजेशन रखता है, तो उसे उस संपत्ति पर अधिकार प्राप्त हो सकते हैं।
- एक व्यक्ति जो अपनी संपत्ति के मालिक है और उसमें 11 साल से अधिक समय से रह रहा है, वह उसके अधिकारी हो सकता है।
- उसकी संपत्ति पर दूसरे व्यक्ति का कब्जा करने की कोशिश से उसे संविदानिक सुरक्षा मिल सकती है।
- उसके विपरीत, किराएदार जबर्दस्त आवास कर रहे हैं,
- तो मकान मालिक के पास किराया वसूलने का अधिकार होता है।
- इस स्थिति में, किराएदार को संपत्ति पर कब्जा करने का कोई अधिकार नहीं होता।
- किसी किराएदार की जब किराया की भुगतान करने की समझौता होती है,
- तो वह तनावमुक्त रहता है।
- इस परिस्थिति में, मकान मालिक के पास नियमित रूप से किराया वसूलने का अधिकार होता है।
- किराएदार को संपत्ति पर कब्जा करने का कोई अधिकार नहीं होता है।
- विपरीत दिक्कत की स्थिति में, किराएदार को विचारणीय चिंता से मुक्त रहने का फायदा होता है।
- यह स्थिति संपत्ति के मालिक के अधिकार को सुनिश्चित करती है और किराएदार की सुरक्षा बढ़ाती है।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला? Landlord And Tenant Laws:
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया, जिसमें उन्होंने लिमिटेशन ऐक्ट 1963 के तहत निजी अचल संपत्ति पर लिमिटेशन (परिसीमन) की वैधानिक अवधि को नया दिशा देने का निर्णय लिया। इस फैसले के अनुसार, निजी अचल संपत्ति के मामले में लिमिटेशन की अवधि 12 साल की जगह होगी, जबकि सरकारी अचल संपत्ति के मामले में यह अवधि 30 वर्षों तक होगी।
इस नए निर्णय के बाद, निजी अचल संपत्ति के मामले में लिमिटेशन की अवधि में कमी होने से यह आसानी से विपणित की जा सकेगी और निजी संपत्ति के स्वामियों को इसका लाभ होगा। सरकारी अचल संपत्ति के मामले में बढ़ी गई अवधि के साथ, सरकार को इसे अधिक सुरक्षित रखने का अवसर मिलेगा।
Landlord And Tenant Laws:
- इस निर्णय से संपत्ति के मालिकों और सरकार के बीच संपत्ति प्रबंधन को सुगम बनाया जा सकता है।
- संपत्ति के लेन-देन की प्रक्रिया में यह निर्णय सुविधाजनकता प्रदान कर सकता है।
- यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया को भी सुविधाजनक बना सकता है
- एवं न्याय की गतिविधियों को बढ़ावा दे सकता है।
- कब्ज़ा की अवधि, जिस दिन व्यक्ति अचल संपत्ति पर कब्ज़ा पकड़ता है,
- उस दिन शुरू होती है।
- कानून 12 वर्षों से अधिक कब्जे को मानता है,
- जिसका मतलब है कि व्यक्ति कब्ज़े में होता है तब से ही उसका अधिकार शुरू होता है।
- अगर 12 वर्षों के बाद कब्जे को खत्म किया जाता है,
- तो व्यक्ति कानूनी अधिकार के तहत संपत्ति पर फिर से दावा कर सकता है।
- इस प्रक्रिया के माध्यम से, कब्जाधारी को संपत्ति पर अधिकार पुनः प्राप्त करने का मौका मिलता है।
- यह कानूनी प्रक्रिया अचल संपत्ति के कब्ज़े को सुरक्षित रखने और न्याय सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
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