सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद से सरकारी शिक्षक लगातार अपने लंबित बकायों के भुगतान की मांग कर रहे हैं। सरकारी कॉलेज के शिक्षकों ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वह जल्द से जल्द राज्य सरकार को वेतन बकाए का भुगतान करे ताकि उनका हक मिल सके। यह मांग इसलिए उठी क्योंकि केंद्र सरकार ने घोषणा की थी कि वह 1 जनवरी 2016 से 31 मार्च 2019 तक की अवधि के लिए 50% राशि का योगदान देगी। यह घोषणा कई शिक्षकों के लिए उम्मीद की किरण बनी, लेकिन अब तक राज्य सरकार को केंद्र से वह योगदान प्राप्त नहीं हुआ है।
तमिलनाडु सरकारी शिक्षक संघ (TN Government Teachers’ Association) के महासचिव एस सुरेश के अनुसार, केंद्र सरकार का बकाया 300 करोड़ रुपये तक का है। यह बड़ी राशि राज्य के सरकारी शिक्षकों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे लंबे समय से अपने बकाए वेतन का इंतजार कर रहे हैं।
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2. केंद्र सरकार की हिस्सेदारी और शिक्षकों की अपेक्षा
शिक्षकों की सबसे बड़ी मांग यह है कि केंद्र सरकार जल्द से जल्द अपना हिस्सा राज्य सरकार को उपलब्ध कराए ताकि राज्य सरकार उनके बकाया वेतन का भुगतान कर सके। केंद्र सरकार ने पहले ही 39 महीनों (1 जनवरी 2016 से 31 मार्च 2019 तक) के लिए 50% हिस्सेदारी साझा करने की बात कही थी। परंतु, तमिलनाडु राज्य को अभी भी वह योगदान प्राप्त नहीं हुआ है, जिससे शिक्षक समुदाय में नाराजगी है।
शिक्षक चाहते हैं कि संघ सरकार तुरंत इस दिशा में कदम उठाए और राज्य सरकार को वित्तीय सहयोग दे। ऐसा न होने की स्थिति में शिक्षकों की आर्थिक स्थिति पर और अधिक बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसके साथ ही, कई शिक्षकों का मानना है कि अगर केंद्र सरकार इस देरी को और बढ़ाती है तो इसे विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से सामने लाया जाएगा।
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3. शिक्षकों की दस सूत्रीय मांगें
शिक्षक संघ की मांगें केवल वेतन बकाए तक सीमित नहीं हैं। ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटी एंड कॉलेज ऑर्गनाइजेशन (AIFUCO) के तहत काम कर रहे संघ के सदस्य अपने दस सूत्रीय चार्टर के माध्यम से अन्य मांगें भी उठा रहे हैं। इसमें सबसे प्रमुख मांग पुरानी पेंशन योजना की बहाली है, जिसे नए पेंशन योजना (NPS) ने बदल दिया था। शिक्षकों का मानना है कि पुरानी पेंशन योजना से उन्हें अधिक सुरक्षा मिलती थी और यह उनके भविष्य के लिए बेहतर थी।
इसके अतिरिक्त, शिक्षक 8वें वेतन आयोग के गठन की भी मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि 7वें वेतन आयोग के बाद से महंगाई लगातार बढ़ी है, जिससे वर्तमान वेतन संरचना शिक्षकों की जीवनशैली के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पा रही है। वे 8वें वेतन आयोग के गठन की दिशा में केंद्र सरकार से त्वरित कदम उठाने की अपेक्षा कर रहे हैं।
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4. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: शिक्षकों का विरोध
शिक्षक संघ द्वारा उठाई गई एक और महत्वपूर्ण मांग राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) को वापस लेने की है। इस नीति को लेकर शिक्षकों में असंतोष है क्योंकि वे इसे शिक्षक समुदाय के लिए अनुकूल नहीं मानते। संघ का कहना है कि यह नीति न केवल शिक्षकों के अधिकारों को कम करती है, बल्कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अस्थिरता भी पैदा करती है।
NEP 2020 को लेकर शिक्षकों का यह भी कहना है कि इससे सरकारी स्कूलों और कॉलेजों की स्वायत्तता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसके परिणामस्वरूप छात्रों और शिक्षकों के लिए शिक्षा का मानक गिर सकता है। इसलिए, शिक्षक संघ इस नीति को वापस लेने की मांग कर रहे हैं और केंद्र सरकार से इसे गंभीरता से विचार करने की अपील कर रहे हैं।
5. प्रदर्शन और भविष्य की योजना
तमिलनाडु के सरकारी कॉलेजों के शिक्षकों ने प्रदर्शन कर अपनी मांगों को प्रमुखता से उठाया है। केंद्र सरकार द्वारा कोई त्वरित कदम नहीं उठाए जाने की स्थिति में शिक्षक संघ अपने आंदोलन को और तेज कर सकते हैं। सरकारी कॉलेजों के सामने प्रदर्शन करते हुए शिक्षक अपनी मांगों को लेकर आवाज उठा रहे हैं, और उन्होंने स्पष्ट किया है कि यदि जल्द ही उनकी मांगें नहीं मानी जाती हैं, तो वे राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शनों की योजना बना सकते हैं।
सभी संघों ने मिलकर यह सुनिश्चित किया है कि उनकी दस सूत्रीय मांगों को केंद्र और राज्य सरकार दोनों के समक्ष प्रस्तुत किया जाए ताकि इन मुद्दों पर जल्द से जल्द कार्यवाही हो सके।
6. शिक्षकों की मांगों का व्यापक प्रभाव
शिक्षकों की मांगें न केवल उनके वेतन और पेंशन तक सीमित हैं, बल्कि यह पूरे शिक्षा तंत्र पर भी प्रभाव डाल सकती हैं। अगर समय रहते इन मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो इसका असर छात्रों की शिक्षा पर भी पड़ सकता है। शिक्षकों के प्रदर्शन और आंदोलन के चलते पढ़ाई-लिखाई में रुकावट आ सकती है, जो लंबे समय तक छात्रों के भविष्य को प्रभावित कर सकती है।
इसके अलावा, पुरानी पेंशन योजना और 8वें वेतन आयोग की मांगें देशभर के शिक्षकों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा हैं। अगर इन मांगों को स्वीकार किया जाता है, तो इसका प्रभाव न केवल तमिलनाडु में बल्कि अन्य राज्यों के शिक्षकों पर भी पड़ सकता है। इस तरह की मांगें राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा और वित्तीय नीति में बदलाव का कारण बन सकती हैं।
निष्कर्ष
सरकारी शिक्षकों की मांगें उनकी आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के साथ जुड़ी हुई हैं। सातवें वेतन आयोग के भुगतान से लेकर 8वें वेतन आयोग के गठन तक, ये सभी मुद्दे शिक्षकों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। केंद्र और राज्य सरकार दोनों को इन मांगों को गंभीरता से लेते हुए त्वरित कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि शिक्षक समुदाय में बढ़ रही असंतुष्टि को समाप्त किया जा सके।