Subhash Chandra Bose Jayanti Speech in Hindi: सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर हम सभी को सादर नमस्कार। इस अद्वितीय दिन को ‘पराक्रम दिवस‘ के रूप में मनाने का अवसर है। नेताजी के साहसी संघर्ष ने देश को स्वतंत्रता की दिशा में प्रेरित किया। हमें उनकी नीति और आत्मबल को अपने जीवन में अनुसरण करना चाहिए। उनकी शौर्यगाथाएं हमें एक सशक्त और एकत्रित भारत की दिशा में प्रेरित करती हैं। इस अवसर पर, हमें यह समझना चाहिए कि हमें अपने देश के प्रति क्या योगदान देना है।
Subhash Chandra Bose Jayanti Speech in Hindi
Subhash Chandra Bose Jayanti Speech: सुभाष चंद्र बोस जयंती पर भाषण (पराक्रम दिवस भाषण)
- आदरणीय मुख्याध्यापक साहब, गुरुजन, और प्रिय साथियों। आज 23 जनवरी, जयंती है उस महान नेताजी सुभाष चंद्र बोस की।
- उनका नेतृत्व और त्याग ने भारत को आजादी की ओर बढ़ाया।
- आज हम सभी कृतज्ञ राष्ट्र के रूप में उन्हें समर्थन और स्नेह भेज रहे हैं।
- नेताजी की जीवनी हमें एक महान क्रांतिकारी की उत्कृष्टता से परिचित कराती है।
- उनके विचार आज भी युवा पीढ़ी को प्रेरित कर रहे हैं।
- नेताजी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपने अद्वितीय योगदान के लिए पहचान बनाई।
- आप सभी से निवेदन है कि हम इस महान नेता की महिमा को साझा करें और उनका आदर करें।
- नेताजी सुभाष चंद्र बोस हमारे देश के अमर हीरो में एक हैं, जिनकी श्रद्धांजलि आज सभी भारतीयों के दिल से निकलती है।
वर्ष 2021 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को पराक्रम दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा
आज देशभर में पूरे उत्साह से मना रहा है पराक्रम दिवस, जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के रूप में है। भारत सरकार ने 2021 में नेताजी की जयंती को पराक्रम दिवस घोषित किया था। सुभाष चंद्र बोस ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उत्कृष्ट नारे दिए जो आजादी की लड़ाई को प्रेरित करते थे। ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा…’ – एक ऐसा नारा जिसने राष्ट्र को उत्साहित किया। उनके ‘जय हिन्द!’ नारे ने आजादी की लड़ाई को तेज किया और उसे एक साहसी रूप में प्रस्तुत किया। सुभाष चंद्र बोस के योगदान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नए ऊचाईयों तक पहुंचाया।
23 जनवरी 1897 में ओडिशा के कटक में हुआ था नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म
- नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 में कटक, ओडिशा में हुआ था।
- वह बचपन से ही अत्यंत तेज़ पढ़ाई में मुश्तमिल थे।
- स्कूल दिनों से ही उनका राष्ट्रवादी स्वभाव प्रकट होता था।
- कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में पढ़ाई करते वक्त उन्हें बाहर निकाला गया।
- इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी गए।
- नेताजी ने भारतीय सिविल सेवा की नौकरी को ठुकरा दिया और आजादी के लिए समर्पित हुए।
- उनकी सिविल सेवा परीक्षा में रैंक 4 थी, लेकिन उन्होंने इसे छोड़ा।
- सिविल सेवक का पद प्रतिष्ठान्वित होता है, लेकिन नेताजी ने उसे त्यागा।
- उन्होंने अपना जीवन ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से मुक्ति प्राप्त करने में समर्पित किया।
- नेताजी ने भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए अपने समर्पण का दृढ़ निर्णय किया।
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1919 में हुए जलियांवाला बाग कांड से विचलित होकर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े
1919 में जलियांवाला बाग ने उन्हें आजादी के लिए उत्तेजित किया. उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने पर कई बार जेल में डाला गया. नेताजी ने 1943 में ‘आजाद हिंद सरकार’ और ‘आजाद हिंद फौज’ की स्थापना की. सुभाष बोस ने बर्मा में 1944 में अपनी फौज के साथ आजादी के लिए संघर्ष किया. उन्होंने नारा दिया, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा.’ गांधी जी के साथ मतभेद होने के बावजूद, उन्होंने उनका सम्मान कभी नहीं गवाया. राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग होकर, स्वतंत्रता के लिए काम किया. सुभाष ने 1944 में रेडियो पर गांधी जी को ‘राष्ट्रपिता’ कहा. उनका निष्ठा और दृढ़ निश्चय ने आजादी की लड़ाई को मजबूती से आगे बढ़ाया. सुभाष बोस, भारत को स्वतंत्र बनाने के लिए अपने जीवन को बलिदान में समर्पित किया।
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1943 में ‘आजाद हिंद सरकार’ और ‘आजाद हिंद फौज’ की स्थापना हुई
- नेताजी भारत को आजादी दिलाने के लिए उत्कृष्ट योजना बना रहे थे।
- 1943 में ‘आजाद हिंद सरकार’ और ‘आजाद हिंद फौज’ की स्थापना हुई।
- 9 देशों की मान्यता से सहारा मिला आजाद हिंद सरकार को।
- सुभाष चंद्र बोस ने 4 जुलाई 1944 को बर्मा में दिल्ली चलो का नारा दिया।
- उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अनेक देशों में सहायता मांगी।
- आज भी नेताजी के विचार और उनके ऊर्जावान नारे प्रेरित करते हैं।
- उनका जीवन हमें त्याग और बलिदान की महत्वपूर्णता सिखाता है।
- जय हिंद का नारा हमें देशभक्ति में जुटा देता है।
- नेताजी के आदर्शों पर चलकर आज को समर्पित करना चाहिए।
- आज हमें उनके बलिदानी परिस्थितियों से सीख लेना चाहिए।